हनुमान जी का माता सीता को अपना परिचय देना
जब हनुमान जी माता सीता की खोज में निकले तो श्री राम जी ने हनुमान जी को अपनी एक अंगूठी दी थी ताकि माता सीता हनुमान जी को राम का दूत समझें न की रावण का दूत । और जब हनुमान जी ने माता सीता को श्री राम की अंगूठी दी तब माता सीता हनुमान जी को पहचान गयी।
दरअसल दोस्तों ये बात त्रेतायुग की है जब श्री राम की आज्ञा से वानर राज सुग्रीव ने हनुमान , जामवंत और अंगद सहित अन्य वानर दल को माता सीता की खोज में निकले थे ।
जब हनुमान जी माता सीता की खोज में निकले थे तो हनुमान जी ने श्री राम जी से बोला " प्रभु अगर मैं माता सीता के सामने जाऊंगा तो वो मुझे कैसे पहचान पाएंगी " । तब श्री राम जी हनुमान की ये बात सुनकर श्री राम ने हनुमान जी को अपनी अंगूठी दी ।
जब हनुमान जी अपनी शक्ति को याद कर लंका गए तो उन्होंने वहां देखा कि रावण माता सीता को डरा और धमका रहा था। सीता माता श्री राम के वियोग में रो रही थी , कि हनुमान जी ऊपर पेड़ में बैठकर ये सब देख रहें थे कि रावण किस प्रकार से माता सीता को परेशान कर रहा है ।
ये सब हनुमान जी से देखा न गया और कुछ समय बाद जब रावण चला गया और जब माता सीता श्री राम जी के वियोग में रो रही थी तो तभी हनुमान जी माता सीता के सामने पेड़ से उतरकर उनके सामने आ गए।
परन्तु जब माता सीता ने हनुमान जी को देखा तो उन्होंने हनुमान जी को रावण का दूत समझकर हनुमान जी को अपशब्द कहा।
परन्तु हनुमान जी ने माता सीता से कहा " हे माता मैं श्री राम का दूत हूँ और उन्होंने मुझे आपको ढूंढ़ने के लिए भेजा है " और मैं 100 समुद्र लाँघ कर आया हूँ।
परन्तु हनुमान जी की ये बातें कहने पर भी माता सीता को हनुमान जी पर विश्वाश नहीं हो रहा था फिर हनुमान जी ने माता सीता को प्रभु श्री राम की अंगूठी दी जिसको देखकर माता सीता को विश्वाश हो गया कि हनुमान जी श्री राम के दूत हैं।
तो दोस्तों इस प्रकार से हनुमान जी ने माता सीता को श्री राम की अंगूठी देकर विश्वाश दिलाया कि वो रामदूत है ।
जब हनुमान जी और माता सीता का वार्तालाप हुआ तब हनुमान जी माता से अशोक वाटिका के फल खाने की इच्छा जताते हैं और माता सीता से कहते हैं कि हे माता मैं बहुत दूर से आया हूँ और मुझे बहुत भूख लगी है कृपया मुझे अशोक वाटिका में फल खाने की आज्ञा दे ।
परन्तु माता ने हनुमान जी से कहा कि " तुम इतने छोटे से वानर हो और रावण के उस अशोक वाटिका में तुमसे कहीं बड़े राक्षस " इसलिए पुत्र तुम वहां मत जाओ ।
माता सीता की ये बात सुनकर हनुमान जी अपने शरीर का आकार कई अधिक बड़ा कर देते हैं और माता सीता से कहते है कि " हे माता प्रभु श्री राम की कृपा से मैं अपने शरीर को कितना भी अधिक बड़ा और छोटा कर सकता हूँ ।
ये सब देखकर माता सीता हनुमान जी को अशोक वाटिका में जाने की आज्ञा दे देते हैं । और जब हनुमान जी अशोक वाटिका में फल खाने जाते हैं तो रावण अपने सैनिक हनुमान जी को पकड़ने भेजता है परन्तु हनुमान जी किसी के हाथ नहीं आते और सभी सैनिकों को हनुमान जी मृत्यु के घाट उतार देते है ।
फिर अंत में मेघनाथ हनुमान जी को ब्रह्मअस्त्र से बांध दिया और हनुमान जी को रावण के सामने ले गए फिर उसके बाद रावण हनुमान जी की पुंछ पर आग लगा देता है।
हनुमान जी की पुंछ में आग लगने के बाद हनुमान जी ने विभीषण के महल को छोड़कर पूरी लंका में आग लगा दी और पूरी लंका को जला दिया।
फिर पूरी लंका को आग लगाने के बाद हनुमान जी माता सीता के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं " हे माता आप मुझे अपनी कोई ऐसी चीज दीजिये जिससे आपकी वो चीज मैं श्री राम को दे सकूँ और उनको विश्वाश दिला पाऊं कि मैं आपसे मिला हूँ " हनुमान जी द्वारा ये सब बोलने पर माता सीता हनुमान जी को अपना चूड़ा मणि देती है और हनुमान जी उस चूड़ा मणि को श्री राम को देते हैं जिस प्रकार से श्री राम को विश्वाश हो जाता है कि हनुमान जी माता सीता को मिले थे ।
तो इस प्रकार से हमने आपको बताया हैं कि किस प्रकार से हनुमान जी माता सीता को विश्वाश दिलाते हैं कि वो रामदूत हैं।
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